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Friday, December 9, 2022

आरक्षण पर काैन कर रहा है खेला, किसने बनाया सियासी अस्त्र

आरक्षण पर काैन कर रहा है खेला, किसने बनाया सियासी अस्त्र

न्यूज़ टुडे समाचार विश्लेषण

   रायपुर(newstoday)छत्तीसगढ़ में आरक्षण का अधिकार अब सियासी मुद्दा बनता जा रहा है। राज्य विधानसभा में आरक्षण संशोधन विधेयक सर्वसम्मति से पारित कराया गया है,लेकिन सदन के बाहर किसके सियासी सुर बदले हुए हैं,आरक्षित वर्ग के लोगों के व्यापक संवैधानिक अधिकारों का दिन प्रतिदिन हनन होना क्या असल में मानवाधिकारों का घोर उपेक्षा नहीं है।

राजभवन में विचाराधीन है विधेयक

छत्तीसगढ़ में 2 दिसंबर को राज्य विधानसभा के विशेष सत्र में आरक्षण संशोधन विधेयक पारित होने के बाद सरकार के वरिष्ठ मंत्री सदन से सीधे राजभवन इस आशा के साथ पंहुचे थे कि महामहिम की मंजूरी फाैरन मिल जाएगी। लेकिन नहीं मिली,राजभवन से कहा गया कि रात अधिक हो गई है। उम्मीद थी कि अगले दिन या और अगले दिन ये मंजूरी मिल जाएगी। लेकिन एक के बाद एक अब 10 दिसंबर का दिन आ गया है। विधेयक मंजूरी के अभाव में लंबित है।76 प्रतिशत आबादी के हित हैं जुड़ेआरक्षण संशोधन विधेयक में छत्तीसगढ़ राज्य के 76 प्रतिशत लोगों के हित सीधे-सीधे जुड़े हैं। ये वही लोग जिन्हें सरकार ने आरक्षण देना मंजूर किया है। इनमें एसटी 32 प्रतिशत,एससी 13,ओबीसी 27 और सामान्य गरीब जिनकी आय आठ लाख से कम हैं,उन्हें 4 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है। राज्यपाल ने कहा था-आते ही मंजूरीराज्यपाल सुश्री अनुसईया उईके ने यह विधेयक  पारित होने के पहले ही मीडिया से चर्चा में कहा था कि जैसे ही विधेयक उनके पास आएगी वे तुरंत मंजूरी देंगी। इससे पहले उन्होंने सरकार को पत्र लिखकर आरक्षण पर विधेयक या अध्यादेश लाने का सुझाव दिया था।

कहां अटका है पेंच

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस मसले पर पहले कहा था कि विधेयक को आज मंजूरी मिले ये कल कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन 2 दिसंबर के बाद से पूरे आठ दिन बीतने के बाद भी जब मंजूरी नहीं मिली तो सरकार ही नहीं प्रदेश की जनता भी समझ रही है कि कहीं न कहीं कोई पेंच अटका जरुर है।

किसने क्या खेला…

ये खेला, पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के समय सामने आया था लेकिन अब दूसरे राज्यों में भी लोग इस शब्द से खेल रहे हैं। छत्तीसगढ़ में किसने क्या खेला अब ये देखना होगा। विधानसभा में यह विधेयक सर्व सम्मति से पारित किया गया है। यानी सत्ता और विपक्ष सब एकमत थे। लेकिन मुख्य विपक्षी भाजपा ने सम्मति देने के साथ ही ये भी जोड़ा था कि एससी को 16 और सामान्य को दस प्रतिशत आरक्षण दिया जाए। हांलाकि राज्य की जनसंख्या के हिसाब से इस हिसाब से आरक्षण का प्रस्ताव देना भी व्यावहारिक नहीं हो सकता है।

अब किस करवट बैठेगा ऊंट

राजभवन से अगर विधेयक को मंजूरी में और समय लगा तो समझा जाएगा कि विधेयक पर अभी और विचार विमर्श बाकी है। इसी बीच सरकार से ये भी पूछा गया है कि अगर मंजूरी के बाद विधेयक के खिलाफ कोई अदालत में स्टे लेते है तो सरकार का तर्क क्या होगा। इस सवाल का सीधा जवाब ये हो सकता है कि मामला कोर्ट में जाने पर वहां जो सवाल उद्भुद होंगे उसका जवाब सरकार विधिक ताैर तरीके से देगी। दरअसल किसी निर्णय को अदालत में चुनाैती नहीं मिलेगी इस बात की गारंटी कोई नहीं दे सकता है। ये दिलचस्प संयोग है कि विधानसभा में भी भाजपा ने यही सवाल उठाया था,उस समय पूछा गया था कि विधेयक पर विधि विभाग की सलाह ली गई या नहीं,उस सलाह में क्या ये गारंटी दी गई है कि विधेयक के खिलाफ कोई कोर्ट में नहीं जा सकेगा। जवाब मिला कि इस बात की गारंटी कोई नहीं देता, न दी जा सकती है। अगर यही बात है तो क्या 2012 में राज्य भाजपा सरकार द्वारा लागू किए गए आरक्षण पर यह गांरटी दी गई थी कि कोई कोर्ट में नहीं जाएगा। लेकिन हुआ यही लोग कोर्ट में गए और सितंबर में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भाजपा सरकार के 58 प्रतिशत आरक्षण को असंवैधानिक मानते हुए खारिज किया। तब सरकार के पास इतना आरक्षण देने के पक्ष में डाटा नहीं था। लेकिन अब राज्य सरकार 76 प्रतिशत आरक्षण प्रस्तावित कर रही है तो उसके पास क्ववांटिफायबल डाटा आयोग की  रिपोर्ट है।,भले ही इसे विधानसभा में पेश नहीं किया गया हो। बहरहाल इस विधेयक को इन पंक्तियों के लिए जाने तक मंजूरी मिलने का कोई समाचार नहीं मिला है। माना जा रहा है कि मंजूरी राज्य के व्यापक जनहित के लिए बेहद अनकूल होगी।

 

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